The Ultimate Guide To Chalawa ki dahshat ek succhi kahani
The Ultimate Guide To Chalawa ki dahshat ek succhi kahani
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इधर मैं अपने दोस्तों के साथ मिल का छुट्टियों का भरपूर मजा ले रहा हूं, दिन भर गांव में आवारागर्दी करना, खेलना, नहाने के लिए नदी में जाना, वहां बैठ कर here हिसर, किंगोड़ा, तूंगा, तिमला( जंगली फल) आदि फल खूब खाते हैं, इसी तरह दिन गुजर रहे हैं।
कभी सोचती कि, “वह कहीं माता - पिता के प्रेम में फरेब और कपट की प्रतिछाया तो नहीं ?
तभी हवा में, अचानक से ठंड पहले से और ज्यादा बढ़ गयी थी। मैंने सोचा नीचे घर में जाया जाये तो जैसे ही मैं अपने घर में जाने लगा। मैंने देखा कि उस आदमी का कद अचानक से बढ़ने लगा है।
कुछ गांव के लोग अपने खेतों में गोट( खेतों में किसी कोने में दोनों तरफ छप्पर लगा कर उसमे अपने जानवरों को बांध कर कुछ समय वहीं उसी छप्पर में रहते हैं ताकि खेतों में ज्यादा से ज्यादा गोबर इकट्ठा हो सके) लगा रहे हैं। गेंहू की बुवाई का समय नजदीक आ गया है, इसलिए काम जल्दी जल्दी हो रहा है।
ठेकेदार—(दुखी मन से)बिटिया इसमें गलती इनकी नहीं।मेरी गलती है।मैं ही पैसों के लालच में पेड़ों को कटवा .
क्या विवाह करना ही किसी नारी के जीवन का मक़सद होना चाहिये ?
ये एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी है, पहाड़ों में आज भी भूनी हुई किसी भी चीज को खुले में, अनजानी जगहों पर, रात में या कहीं जंगलों में खाने के लिए मना किया जाता है, ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने पर छलावा (भूत) उसे छल लेता है।
एक साथ कई तरह के भाव अलका के चेहरे पर आकर धमाचौकड़ी करने लगे। चिट्ठी हाथ में दबाए वह बहुत तेज़ी से द.
‘ बस पहुँच ही रहे हैं ।’ आलोक अंकल ने उत्तर दिया । उसकी स्थिति देखकर। .
थानेदार ने उस औरत को कानून की पैनी नज़रों से देखा। फिर अपने फर्ज की कैंची से उसकी बात बीच में ही काट .
उन्होने कहा कि वो एक छलावा था और छलावा बहुत ही ख़तरनाक होते हैं। तेरी जान इसलिए बच गयी क्यूंकि तेरे गले में यह माता रानी का रक्षा कवच था। तब मुझे याद आया कि यह तो मैंने थोड़े दिन पहले ही अपने गले में बांधा था।
अभी रात में खाना खाने के बाद हम सब ख्वाल ( गांव का एक छोटा मोहल्ला) में बाहर ही खटिया लगा के दादी से कहानी सुन रहे थे, कुछ तो अभी जुगनू पकड़ने में व्यस्त हैं, रात बहुत धीरे धीरे गहरा रही है और हम सब सोने की तैयारी करने लगे हैं, अभी नींद आईं ही थी कि सहसा गांव में हर तरफ शोर होने लगा, हलचल बढ़ गई, सभी उठ गए कि आखिर क्या माजरा है, बुजुर्ग आपस में बात करने लगे, और हम सब बच्चे डर के मारे अपने अपने माता पिता, दादी, दादा, ताई, से चिपक कर रोने लगे, समझ ही नहीं आ रहा था कि इतनी रात कौन शोर कर रहा है और क्यों ?
उस समय मेरे पैर जैसे जम ही गये थे। उस समय मैं खुद को कोसने लगा कि मैं ऊपर आया ही क्यों? अब मैं नही बचने वाला।
बात उन दिनों की है जब मैं अपनी बहनों के साथ सर्दियों की छुट्टियां मनाने अपने गांव गया हुआ था। मेरी ही तरह और बच्चे भी गांव आए हुए थे।गांव में सर्दियों में काफी चहल पहल हो जाती है। गांव में काफी भीड़ भाड़ और उत्सव जैसा माहौल हो जाता है, हर तरफ शोर, हल्ला गुल्ला, बच्चों की उधम चौकड़ी से ऐसा लगता है, जैसे गांव फिर से जी उठा हो। ऐसा नहीं है कि गांव में लोग नहीं है, पर जो है वो अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं। धान और भुट्टा (मक्काई) कट चुका है और गेंहू की बुआई के लिए खेत तैयार हो रहे हैं। खेतों में जगह जगह गोबर का ढेर लगाया जा रहा है, गांव के लोग आज कल बहुत व्यस्त हैं, बच्चे महिलाएं सभी गोबर उठा उठा कर खेतों में ले जा रहे हैं, ताकि खेतों को ज्यादा खाद मिल सके।
इस आस के संग उसने अपने घायल तन-मन को समझाने के साथ अपने अनियंत्रित विचारों को झटकने का प्रयत्न किया .
उधर दूसरी ओर वो, गिरीश भाई को एक खेत से दूसरे खेत की ओर ले जा रहा था, और गिरीश भाई की जान संकट में थी, अगर शीघ्र उसे ना रोका गया तो वो, गिरीश भाई को मार देगा। सभी लड़के तेजी से भाग रहे थे, परन्तु पहाड़ में उकाल (चढ़ाई) में चढ़ना आसान नहीं होता, खेती सीढ़ी नुमा होती है जिससे एक खेत से दूसरे खेत में जाने में समय अधिक लगता है, फिर भी लड़के ऊपर खेत की ओर भागे जा रहे थे कि किस तरह से गिरीश को "केरी" पार करने से रोका जाए।
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